Astrology

ज्योतिष ज्ञान

 

मांगलिक दोष और उपाय

मांगलिक दोष और उपाय

कुंडली मैं मंगल ग्रह जब 1, 4, 7, 8 या 12 घर में बैठा हो तब मांगलिक दोष निर्मित होता है।जिन जातक जातिकाओं की कुंडली मैं ये दोष होता है उनकी शादी में परेशानियां आती हैं। तथा मांगलिक दोष वाले लोगो मैं क्रोध तथा चिड़चिड़ापन भी अधिक होता है। अगर किसी जातक की कुंडली में मंगल दोष है तो उसकी शादी मांगलिक से ही करनी चाहिए।

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उपाय :- मांगलिक दोष से ग्रसित जातको को हनुमान जी की पूजा और मंगलवार का उपवास करना शुभ फलदायी होता है।

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काल सर्पदोष और उपाय kalsarp dosh

काल सर्पदोष और उपाय

जन्मपत्रिका मैं राहू- केतू के बीच सभी ग्रह (सूर्य,मंगल,बुध,शुक्र,चंद्र,गुरु और शनि) आने पर ‘काल-सर्प योग’ का निर्माण होता है। इस योग के कारण अनिष्ट बहुत आते है तथा जीवन के हर क्षेत्र मैं बहुत परिश्रम करना पड़ता है। लेकिन कुछ विशेष ग्रह योगो के कारण मिश्रित फल प्राप्त होते है।

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उपाय :- भगवान शिव की आराधना करनी चाहिए, तथा योग्य पुजारी द्वारा इस दोष की शांति करनी चाहिए।

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पितृ दोष और उपाय

पितृ दोष और उपाय

जन्मपत्री मैं जब सूर्य ,मंगल ,चंद्र ग्रह पाप ग्रहों के प्रभाव मैं आते है तब इस दोष का निर्माण होता है। बहुत से लोग इसे पूर्वजों के बुरे कर्मों का फल मानते है। इस दोष के होने से शादी विवाह मैं कठिनाई होती है संतान प्राप्ति में बेहद कठिनाई होती है तथा आर्थिक नुक्सान की सम्भावना बनी रहती है।

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उपाय :- इस दोष से मुक्ति के लिए पितृ पक्ष में पित्ररों का दान और सप्रेम ब्राह्मणों को भोजन कराएं।
पीपल के पेड पर सरसो के तेल का दीपक जलाये तथा जल, पुष्प,काले तिल चढ़ाकर अपने पूर्वजो     को याद कर उनसे आशीर्वाद मांगना चाहिए।

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उच्च - नीच ग्रहो का फल

कुंडली मैं ग्रहों की उच्च और नीच अवस्था का फल

कुंडली मैं किसी ग्रह के उच्च तथा नीच के होने का अर्थ है की जब कोई गृह उच्च अवस्था मैं होता है तब उस ग्रह से सम्बंधित शुभ फलो मैं वृद्धि होती है तथा जब ग्रह नीच अवस्था मैं होता है तब उस ग्रह से सम्बंधित शुभ फलो मैं कमी होती है। कुंडली मैं ग्रहो की उच्च एवं नीच अवस्था के साथ साथ उन ग्रहो के बल तथा उनकी स्तिथि पर भी विचार करना चाहिए।

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उच्च ग्रहो का फल :- 

१- सूर्य ग्रह मेष राशि मैं उच्च का रहता है। सूर्य देव के उच्च राशि मैं होने पर मनुष्य बहुत धनवान और उग्रस्वभाव वाला होता है।

२- चंद्र ग्रह वृष राशि में उच्च का रहता है। चंद्र देव के उच्च राशि मैं होने पर मनुष्य अच्छे आभूषण बाला,बड़े भोग करने बाला तथा धनवान होता है।

३ -मंगल ग्रह मकर राशि में उच्च का रहता है। मंगल देव के उच्च राशि मैं होने पर मनुष्य अच्छे पुत्र बाला ,तेजस्वी और घमंडी होता है।

४-बुध ग्रह कन्या राशि में उच्च का रहता है। बुध देव के उच्च राशि मैं होने पर मनुष्य बुद्विमान ,बलवान तथा दृढ़ प्रतिज्ञा बाला होता है।

५ -वृहस्पति ग्रह कर्क राशि में उच्च का रहता है। वृहस्पति देव के उच्च राशि मैं होने पर मनुष्य राजपूज्य, प्रसिद्ध, पंडित तथा श्रेष्ठ कर्म करने बाला होता है।

६ -शुक्र ग्रह मीन राशि में उच्च का रहता है। शुक्र देव के उच्च राशि मैं होने पर मनुष्य भोग-विलासों मैं लिप्त,बहुत हॅसने बाला तथा गायन विद्या मैं प्रीत रखने बाला होता है।

७-शनि ग्रह तुला राशि में उच्च का रहता है। शनि देव के उच्च राशि मैं होने पर मनुष्य चक्रबर्ती,धनवान,तथा किसी बड़े ओहदे पर कार्य करता है।

८ – राहु -केतु के फल शनि देव के फलो के समान होते है।

नीच ग्रहो का फल :-

१- सूर्य ग्रह तुला राशि मैं नीच का रहता है। सूर्य देव के नीच राशि मैं होने पर मनुष्य दास होता है तथा वान्धवों से वर्जित होता है।

२- चंद्र ग्रह वृश्चिक राशि में नीच का रहता है। चंद्र देव के नीच राशि मैं होने पर मनुष्य रोगी ,श्रमहीन तथा आलसी होता है।

३ -मंगल ग्रह कर्क राशि में नीच का रहता है। मंगल देव के नीच राशि मैं होने पर मनुष्य नीच ,कुत्सित तथा व्यसनी होता है।

४-बुध ग्रह मीन राशि में नीच का रहता है। बुध देव के नीच राशि मैं होने पर मनुष्य तुच्छ बुद्धि बाला तथा वान्धवों से बैर रखने बाला होता है।

५ -वृहस्पति ग्रह मकर राशि में नीच का रहता है। वृहस्पति देव के नीच राशि मैं होने पर मनुष्य दुःखी तथा मलिन होता है।

६ -शुक्र ग्रह कन्या राशि में नीच का रहता है। शुक्र देव के नीच राशि मैं होने पर मनुष्य स्त्रीरहित तथा शीलरहित होता है।

७-शनि ग्रह मेष राशि में नीच का रहता है। शनि देव के नीच राशि मैं होने पर मनुष्य काना तथा दरिद्री होता है।

८- राहु-केतु के फल शनि देव के फलो के समान होते है।

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शनिदेव की साढे साती एवं उपाय

शनिदेव की साढे साती एवं उपाय

धार्मिक मतानुसार शनि देव को त्रिदेव ने कर्मफल दाता की पदवी दी हैं। शनि देव का न्याय पक्षरहित होता है।अर्थात जो जैसे कर्म करता है शनिदेव उसको उन्ही के कर्मो के अनुसार फल प्रदान करते है। ज्योतिषशास्त्र मैं जब शनि गोचर में जन्म चन्द्र राशि से प्रथम, द्वितीय तथा द्वादश भाव मैं विचरण करते है। तब साढ़ेसाती होती है। शनि देव का एक राशि मैं विचरण का समय ढ़ाई वर्ष का होता है। इस प्रकार तीन राशियों मैं विचरण करते हुए शनिदेव साढ़े सात वर्ष का समय लेते है जो साढ़ेसाती कहलाती है। शनि की साढ़ेसाती और महादशा के दौरान मनुष्यो को कठिनाईयों एवं परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

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उपाय :- शनिवार को पीपल के पेड़ पर तेल का दीपक जलाये और अपने बुरे कर्मो की माफ़ी मांगे।
:-  शनिवार का व्रत और शनि मंत्रो का जाप करे तथा किसी जरूरत मंद को शनि देव से जुड़ी वस्तुएं जैसे काली उड़द की दाल,काले तिल,काले कपड़े आदि का दान देना चाहिए।
:-  सुन्दरकाण्ड तथा हनुमान चालीसा का नित्य पाठ करना चाहिए और मंगल /शनिवार को हनुमान जी के दर्शन करना लाभकारी होगा।

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 दोष और उपाय